
विवेक शर्मा हमीरपुर :- भारत का सबसे बडा पर्व दीवाली को लेकर जहां हर जगह जोर शोर से तैयारियां चली हुई लेकिन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला के सम्मू गावं ऐसा है जहां पर सैकडों सालों से दीवाली मनाना तो दूर की बात दीवाली पर घर पर पकवान तक नहीं बनाए जाते है। जी हा ऐसा शापित गांव संम्मू जहां पर किसी ने दीवाली मनाने की कोशिश की तो गांव मंे या तो आपदा आई या फिर अकाल मृत्यु हो जाती है। जिस कारण सैकडों सालों से सम्मू गांव में दीवाली को लेकर कोई तैयारी नहीं की जाती है और त्योहार को नहीं मनाया जाता है।
हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूरी पर स्थित सम्मू गांव में दीवाली को लेकर कोई रौनक नहीं देखी जा रही है और सैकडों सालों से दीवाली को मनाने से परहेज किया जाता है। हालांकि दीवाली दिन दीप तो जलाए जाते है लेकिन अगर किसी परिवार ने गलती से भी पटाखे जलाने के साथ साथ घर पर पकवान बनाने का काम किया तो फिर गांव में आपदा आएगी या फिर अकाल ही किसी की मृत्यु हो जाएगी। यही नहीं कई बार गांव के लोगों ने इस शाप से मुक्ति पाने के लिए कोशिशें की है लेकिन फिर भी शाप से मुक्ति नहीं मिल रही है। और मजबूरन गांव के लेागों को दीवाली त्योहार मनाने से कोसों दूर ही रहना पडता है। यही कारण है कि आज भी इस गांव में इस श्राप की इतना खौफ है कि दीपावली को गांव के लोग घरों से बाहर भी निकलना मुनासिव नहीं समझते । इसे संयोग कहे या श्राप की दीपावली के महीने में इस गांव में किसी न किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
सम्मू गांव में सैकडों वर्षो से दीपावली का त्यौहार नहीं मनाया गया है। अगर कोई परिवार दीपावली के त्यौहार को मनाने की कोशिश करता है तो गांव में कोई न कोई अकाल मृत्यु हो जाती है। यह गांव एक ऐसा श्राप भुकत रहा है। जो पिछले सैंकड़ों सालों से इस गांव का पीछा नहीं छोड़ रहा। दरअसल दीपावली के ही दिन गांव की ही एक महिला अपने पति के साथ सति हो गई थी महिला दीपावली का त्यौहार मनाने के लिए अपने मायके जाने को निकली थी। उसके पति राजाओं के समय में सैनिक था लेकिन जैसे ही महिला गांव से कुछ दूर आ गई तो सामने से उसके पति के शव को ग्रामीण ला रहे थे। उसके पति की मृत्यु डयूटी के दौरान हो गई थी। महिला गर्भवति भी थी। कहते है कि महिला को यह सदमा बर्दाशत नहीं हुआ और वह अपने पति के साथ ही सति हो गई। जाते जाते वह सारे गांव को यह श्राप देकर चली गई कि इस गांव के लोग कभी भी दीपावली का त्यौहार नहीं मना पाएगे। और उस दिन से आज तक इस गांव में दीवाली नहीं मनाई है और लोग केवल सती की मूर्ति की पूजा करते है।
पचहत्तर बसंत देख चुके ठाकुर बुद्धि सिंह ने बताया कि सैकडों सालों से गांव में दीवाली नहीं मनाई जाती है और दीवाली को मनाने की कोशिश करते है तो दीवाली के बाद गांव में किसी न किसी की मौत हो जाती है या फिर आपदा आती है। इसलिए लोग दीवाली त्योहार को नहीं मनाते है।
धीरे ण्धरे वक्त बीतता चला गया सौ साल बीत गये। लेकिन परंपरा नहीं बदली। दीपावली का त्यौहार और सजनेण्संवरने का मलाल भी इस गांव के लोगों की जुबान पर साफ झलकता दिखाई दिया।
गांव की एक उर्मिला नामक महिला ने बताया कि जब से वो इस गांव में शादी करके आई हैं तब से आज तक गांव में कभी दीवाली मनाते हुए नहीं देखी है। उन्होंंने बताया कि गांव के लोग यदि गांव के बाहर भी बस जाएं तब भी सती का श्राप उनका पीछा नहीं छोड़ता। उन्होंने बताया कि गांव का एक परिवार गांव के बाहर दूर जाकर बस गया, जब उन्होंने वहां दीवाली के स्थानीय पकवान बनाने की कोशिश की तब अचानक ही उनके घर को आग लग गई। उन्होंंने बताया कि गांव के लोग सती की पूजा करते हैं तथा उसी के आगे दीया जलाते हैँ।
एक अन्य व्यक्ति रत्न चंद ने बताया कि गांव को इस श्राप से मुक्त करवाने के लिए कई बार टूने टोटके से लेकर हवन यज्ञ तक का सहारा लिया गया। लेकिन सब कुछ विफल रहा। करीब 3 साल पहले गांव में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन भी किया गया था। लेकिन आज दिन तक इस गांव को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल पाई।
युवा अनूप ने बताया कि जिस वे पैदा हुए हैं उन्होंने कभी भी दीवाली नहीं मनाई। उन्होंने बताया कि इसके पीछे जहां सती का श्राप प्रमुख कारण हैं वहीं यह एक परम्परा भी बन गई है तथा उन्होंने खुद दीवाली के नजदीक गांव में अनहोनी होते हुए देखी है। उन्होंने बताया कि दीपावली का त्यौहार आते ही गांव में कोई न कोई मृत्यु हो जाती है। उन्होंने बताया कि पता नहीं इस गांव को इस श्राप से मुक्ति कब मिलेंगी।