
विशाल राणा / हमीरपुर
भारत की धार्मिक सौहार्द की तस्वीर अगर देखनी है, तो इसके लिए प्रतिशत के हिसाब से देश के सबसे जायदा हिंदू आबादी वाले प्रदेश हिमाचल में आयोजित होने वाली छिंज (मेले) से अच्छा मौका शायद ही मिले, क्योंकि हिमाचल प्रदेश के गांवों में सदियों से आयोजित होने वाली छिंजो (मेलों) में लोग धर्म और जाति सब भूल कर एक हो जाते हैं. ऐसी धार्मिक एकता का उदाहरण हिमाचल में देखने को मिलता है , जहां आयोजित होने वाले छिंजो (मेलों) का आयोजन मुस्लिम समुदाय के लोगों की सहभागिता के बिना नही होता।

हिमाचल प्रदेश में अधिकतर मेले और उनमें होने वाले दंगल ख्वाजा पीर और हनुमान भगवान को समर्पित होते हैं, जिनको देखने बड़ी संख्या में लोग इक्कठा होते है। इन मेलों में मुस्लिम समुदाय के लोग पहले एक विशेष परिधान में पूजा अर्चना के ढोल बजाते हुए आम जनता को निमंत्रण देते हैं।

मेले वाले दिन दंगल स्थल पर उन्हीं के द्वारा झंडा रस्म की जाती है जिसके बाद ही दंगल प्रारंभ होता है। उसके बाद पूरे दंगल के दौरान वो लोग पहलवानों का जोश बढ़ाने के लिए ढोल बजाते हैं। जहां बजरंगबली और लखदाता की पूजा होती है वहां पर मुस्लिम समुदाय के लोगों का एक विशेष योगदान रहता है और ये परंपरा वर्षों से हिमाचल प्रदेश के सभी जनपदों में चली आ रही है। हिमाचल में लोगों की मान्यता है कि जो लोग इन मेलों में आयोजित दंगल को देखते हैं, इस से उनकी आयु में वृद्धि होती है।

हमीरपुर जिला के हर गांव में छिंज मेलों का एक विशेष महत्व है, यहां कई वर्षों से ऐसे आयोजन मुस्लिम समुदाय के सहयोग से किए जा रहे हैं। कई दशकों से ऐसा ही एक मेला आयोजित करने वाले दीपक शर्मा बताते हैं कि हमीरपुर उनका परिवार अपने पैतृक गांव में दशकों से ऐसे मेले का आयोजन करता आ रहा है। और वो बताते हैं कि माघ महीने से शुरू होने वाली ये छिंजे कई महीनों तक हमीरपुर जिला के लगभग हर पंचायत में आयोजित होती है और मुसलमान भाई उसमे अपना सहयोग करते हैं। धर्म और आयोजन के बीच अंतर बताते हुए एक उन्होंने ने कहा, “धर्म एक व्यक्तिगत मामला है. उत्सव एक सामाजिक विषय है.” उन्होंने आगे कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए हम सभी समुदाय के लोग इन आयोजनों में हिस्सा लेते हैं.”