कामकाजी महिलाओं की समन्वय समिति सीटू का राज्य स्तरीय अधिवेशन हमीरपुर में हुआ सम्पन्न

हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ :-  कामकाजी महिलाओं की समन्वय समिति सीटू का राज्य स्तरीय अधिवेशन कॉमरेड ज्योति बासु भवन हमीरपुर में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन में वीना शर्मा को संयोजक, हिमी देवी, नीलम जसवाल, निशा, सरीना, शांति, अंजू, रजनी, शशि, नेहा, हमिन्द्री, सन्तोष, अनुराधा, सुषमा शर्मा, रजनीश, उर्मिला शर्मा, बिमला, हेमा व राजकुमारी को कमेटी सदस्य चुना गया।

अधिवेशन में सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, कोषाध्यक्ष अजय दुलटा, उपाध्यक्ष राजेश ठाकुर, सुरेश राठौर, रंजन शर्मा सहित प्रदेश के सभी जिलों से आई कामकाजी महिलाओं ने भाग लिया।

 

अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए डॉ कश्मीर ठाकुर ने कहा कि भारतीय समाज में महिलाएं तिहरे शोषण की शिकार हैं। वे एक नागरिक के रूप में शोषित रहती हैं क्योंकि अर्धसामंती पूंजीवादी समाज में वे हमेशा दोयम दर्जे की नागरिक के रूप में जीवन जीने को मजबूर रहती हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार के बावजूद उन्हें समानता हासिल नहीं होती है। वे एक मजदूर के रूप में शोषण का शिकार होती हैं। सन 1976 में बने समान पारिश्रमिक कानून के बावजूद उन्हें कई क्षेत्रों में पुरुष मजदूरों के बराबर वेतन नहीं मिलता है व उन्हें कम वेतन देकर कम आंका जाता है। वे आर्थिक शोषण की शिकार होती हैं। अगर महिलाएं दलित हों तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 17 के बावजूद समाज में जातिगत शोषण, छुआछूत व भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। महिलाओं को लैंगिक उत्पीड़न का भी शिकार बनना पड़ता है। इस तरह महिलाएं भारतीय समाज में आधी आबादी होने के बावजूद भी शोषण व दमन का शिकार बनती हैं व दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में जीने को मजबूर होती हैं।

नवनिर्वाचित राज्य संयोजक वीना शर्मा ने कहा कि वर्तमान केन्द्र व प्रदेश सरकारें नारी उत्थान व महिला सशक्तिकरण के नारे तो देती हैं परन्तु कभी भी महिला स्वावलम्बन के लिए कार्य नहीं करती हैं। वे महिलाओं को केवल करवा चौथ व भाई दूज की छुट्टियां देकर सन्तुष्ट करने की कोशिश करती हैं परन्तु उनको कभी भी सम्मानजनक वेतन नहीं देती हैं। योजना कर्मियों के रूप में कार्य करने वाली आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील महिलाओं को आज के इस भारी महंगाई के दौर में केवल मात्र चार हज़ार से लेकर साढ़े नौ हजार वेतन दिया जाता है जबकि माननीय सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के आदेश व सन 1957 के भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार यह वेतन 26 हज़ार होना चाहिए था। मजदूर व कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाली महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है। इस तरह महिलाएं सामाजिक, लैंगिक व आर्थिक शोषण से पीड़ित हैं। इसका मुकाबला केवल संगठन के माध्यम से ही किया जा सकता है।

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