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किसान सभा के राज्य अध्यक्ष की अध्यक्षता में सत्र का आयोजन

शिमला/विवेकानंद वशिष्ठ :-   किसान सभा के राज्य स्तरीय प्रशिक्षण एवं सेमिनार के तीसरे दिन “हिमाचल की आर्थिकी – किसानी बागवानी तथा प्राकृतिक आपदा से जुड़े मुद्दों” पर किसान सभा के राज्य अध्यक्ष की अध्यक्षता में सत्र का आयोजन किया गया। डॉ तँवर ने बताया कि आज हिमाचल की आर्थिकी में वनों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

 

उन्होंने कहा कि आज प्रदेश में डेढ़ लाख करोड़ रुपये की वन सम्पदा मौजूद है। लेकिन सकल घरेलू उत्पाद मे योगदान 40 फीसदी से घट कर आज केवल 8 फीसदी ही रह गया है। इसके इलावा प्रदेश की वन सम्पदा को सुरक्षित व संरक्षित करने के एवज में केंद्र सरकार से 4000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से हिमाचल की जनता का हक बनता है जिसे प्रदेश की सरकारें अभी तक नहीं ले पायी है।

 

 

 

इसके बाद राज्य संसाधन केंद्र के निदेशक डॉ ओ. पी. भूरेटा ने विभिन्न विभागों द्वारा जारी आंकड़ों का प्रदेश की भौगोलिक स्थिति तथा किसानी बागवानी के दृष्टिकोण के अनुरूप विश्लेषण करते हुए सेमिनार में प्रस्तुति की। उन्होंने कहा कि प्रदेश में खेती योग्य जमीन केवल 11 प्रतिशत ही है। अन्य बन्जर भूमि में से केवल 4 प्रतिशत भूमि ही उपयोग योग्य है।

आज प्रदेश मे 9, 96,809 किसान परिवारों के पास 9,44,226 जोतें हैं, जिसमे 88 फीसदी किसान लघु एवं सीमांत किसानों की श्रेणि (2 हेक्टेयर से कम) मे आते हैं। डॉ ओ पी ने कहा कि प्रदेश मे केवल 9.74 फीसदी श्रमिक ही संगठित क्षेत्र में हैं

जबकि 90.36 फीसदी असङ्गठित क्षेत्र मे है जिन पर सरकार की लाभकारी नीतियों का प्रभाव नहीं के बराबर है। इस सम्बन्ध में किसान सभा को ठोस विश्लेषण करते हुए ठोस हस्तक्षेप करने की आवश्यक्ता है।

दुग्ध उत्पादक संघ के सचिव देवकी नंद ने कहा कि दूध के मुद्दे पर अलग से दुग्ध उत्पादक संघ का गठन करके विशेषकर सतलुज बेसिन क्षेत्र के 7 विकास खंडों (रामपुर, निरमड, आनी, करसोग, ननखडी़, कुमारसेन, निचार) में प्रभावी रूप से हस्तक्षेप किया है तथा दुग्ध उत्पादक किसानो को लामबंद करके संघर्षो से कई प्रकार के लाभ भी लिए है।

भूमि अधिग्रहण के प्रभावितों के मुद्दों को रेखांकित करते हुए जोगिंदर वालिया ने कहा कि किसानो की व्यापक लामबन्दी के साथ कोविड के बाद लगातार हस्तक्षेप किया गया। क्योंकि केवल 4 ही फोरलेन सड़कों मे करीब ढाई लाख हेक्टेयर भूमि जा रही है, इसलिए भूमि प्रभावितों के मुद्दों पर प्रदेश स्तर पर ठोस योजना बनाकर व्यापक हस्तक्षेप की जरूरत है।

सेमिनार का समापन करते हुए पूर्व महासचिव राकेश सिंघा ने कहा कि आज दुनिया के स्तर पर पुँजीवाद गहरे संकट के दोर से गुजर रहा है, लेकिन इससे आसानी से उभरने के आसार नज़र नहीं आ रहे। जिसके परिणामस्वरूप छोटे किसानो को अपनी आजीविका को बचाना कठिन हो गया है।

इसलिए आज जनता के विभिन्न हिस्सों की व्यापक लामबंदी तथा बिना संघर्षो के कोई और रास्ता नहीं है। सिंघा ने कहा कि इस प्रशिक्षण के बाद अगली परिक्षा 25 नवम्बर को किसानो के महापडाव को सफल बनाने की है। ताकि किसानो की देशव्यापी लामबंदी को मजबूत किया जा सके।

प्रशिक्षण एवं सेमिनार मे आये प्रतिनिधीयों का धन्यवाद करते हुए सचिव होत्तम सोंखला ने सभी सहयोगियों का धन्यवाद किया जिन्होंने किसान सभा के इस सेमिनार को सफल बनाने में सहयोग दिया है।

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