हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ :- फुर्सत के वक्त बच्चे बच्चियों को टीवी और मोबाइल फोन दिखाने की बजाय उन्हें अपनी पहाड़ी संस्कृति से अवगत करवाना कहीं ज्यादा बेहतर है। पहाड़ी संस्कृति सबसे अच्छी है। एक समय था जब प्रदेश से अन्यत्र जाने पर किसी के द्वारा पहाड़ी कहलाए जाने पर शर्म महसूस की जाती थी लेकिन आज वक्त बदला है आज पहाड़ी गीत भी गर्व के साथ गाये जा रहे हैं ।
गसोता में पहाड़ी संगीत प्रतियोगिता की विजेताओं को पूर्व मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित
शुक्रवार को हमीरपुर के गसोता में भाजपा द्वारा आयोजित पहाड़ी संगीत प्रतियोगिता में भाग ले रही महिलाओं को संबोधित करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि जब हम छोटे थे तब हम घर पर पढ़ाई लिखाई और घर के कामों से बचे हुए समय में अपने बड़े बुजुर्गों से कहानी सुना करते थे। उन कहानियों में छिपा हुआ सार जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता था कुछ सिखाता था। ऐसी ही हमारी पहाड़ी संस्कृति है हमारे लोकगीत है उनमें कोई ना कोई अच्छा संदेश छुपा होता है जो सही राह दिखाता है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी पहाड़ी संस्कृति में हमारे जीवन के कई शुभ कार्यों हेतु हर मुहूर्त हर घड़ी से जुड़ा एक लोकगीत होता है जैसे सुहाग घोड़ियां इत्यादि। हमारी पारंपरिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम मातृशक्ति के जिम्मे है और बहुत अच्छा लगता है जब हम देखते हैं आज भी गांव-गांव में महिला शक्ति हमारी पारंपरिक विरासत को संभाले हुए हैं पहाड़ी संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। और यह आगे बढ़नी चाहिए। हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारी पहाड़ी संस्कृति का ज्ञान होना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर ने पहाड़ी संगीत प्रतियोगिता के माध्यम से एक बहुत अच्छी पहल समाज में शुरू की है। इससे सभी लोगों को हमारी पहाड़ी संस्कृति से रूबरू होने का अवसर तो मिलेगा ही साथ में मातृशक्ति को मंच मिलेगा जहां वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकेंगे और अपना आत्मविश्वास जगाएंगी इस प्रकार हम महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य पर भी आगे बढ़ रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आज संपूर्ण भारतवर्ष में राम जन्मभूमि अयोध्या में हुए भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के पश्चात जो माहौल देखने को मिल रहा है ह भाव विभोर करने वाला है और हो भी क्यों नहीं सदियों के इंतजार के पश्चात प्रभु श्री राम लला अपने स्थान पर विराजमान हुए हैं। हमारे लिए खुशी की एक बात और यह भी है की पहली फरवरी से काशी में भगवान शिव के स्थान के द्वार खुले हैं और वहां पर नित्य पूजा अर्चना होना शुरू हुई है।