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जगजीत सिंह शख्स नहीं, शख्सियत थे।

हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ :- गजल के बादशाह जगजीत सिंह की गजल में था, बेटे को खोने का दर्द

 

गजल के बादशाह कहे जाने वाले जगजीत सिंह (Jagjit Singh) कौन भूल सकता है. उनकी गजल सुनने के बाद कोई बिना तारीफ करे खुद को रोक ही नहीं सकता है। आज उनकी 81वीं जयंती है। उन्होंने अपनी आवाज से सभी का दिल जीत रखा था।

उनके गायन को सुनने के बाद किसी दूसरे संगीत को सुनने की इच्छा ही नहीं होती थी। आज भले ही वो हमारे बीच ना हो लेकिन जो उन्होंने विरासत के रूप में अपनी गजल और संगीत दी हुई है वो हर कोई याद करता है. उनके सबसे चर्चित गानों में से एक होठों से छू लो तुम लोग आज भी सुनना पसंद करते हैं।

 

 

गजल की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले जगजीत सिंह ने अपनी पुरकशिश और दर्द भरी आवाज से जो भी गाया, उसे अमर बना दिया। 

 

भारत के नामचीन शायरों के साथ उनकी बेहतर जुगलबंदी रही, जबकि मशहूर शयर निदा फाजली ने तो यहां तक कह दिया था कि जगजीत सिंह उनकी रूहों में बसते हैं। निदा फाजली की ही कई गजलों और रुबाईयों को जगजीत सिंह ने बड़ी शिद्दत और गहराई से गाकर लोगों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया है।

 

 

 

मैं रोया परदेश में भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बात की बिन चिट्टी, बिन तार जैसी गजल को भला कौन भूल सकता है।

इस गजल के हर मतले में जीवन की सच्चाईयों का बखूबी वर्णन किया गया है। निदा फाजली की ही गजल मुंह की बात करे हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन, आवाजों की दुनिया में खामोशी पहचाने कौन जैसी गजल में भी शायर ने जहां दर्द का समंदर बहा दिया है, वहीं जगजीत सिंह की आवाज ने उसे और उम्दा बना दिया है। शायर निदा फाजली, बशीर बद्र, गुलजार, जावेद अख्तर जगजीत सिंह के पसंदीदा शायरों में शामि रहे हैं। । वह निदा फाजली के दोहों का एलबम इनसाइट कर चुके हैं। जावेद अख्तर के साथ सिलसिले ज़बरदस्त कामयाब रहा है।

लता मंगेशकर के साथ सजदा, गुलज़ार के साथ मरासिम और कोई बात चले, कहकशां, साउंड अफेयर, डिफरेंट स्ट्रोक्स और मिर्ज़ा ग़ालिब अहम हैं। करोड़ों लोगों को दीवाना बनाने वाले जगजीत सिंह ने मीरो गालिब से लेकर फैज और फिराक तक और गुलज़ार, निदा फाजली से लेकर राजेश रेड्डी और आलोक श्रीवास्तव तक हर दौर के शायरों की गजलों को अपनी आवाज दी है।

 

वर्ष 1981 में रमन कुमार निर्देशित प्रेमगीत और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित अर्थ के गीतों में जगजीत सिंह की ही भावपूर्ण आवाज थी, जो बेहद पापुलर हुए थे।

 

अर्थ फिल्म में जगजीत सिंह ने ही संगीत दिया था। इसके बाद भी कई फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया है, लेकिन पूर्व की तरह वह ज्यादा कामयाब नहीं हो सके हैं। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म लीला का संगीत औसत दर्जे का ही रहा है।

वर्ष 1994 में खुदाई, 1989 में बिल्लू बादशाह, 1989 में कानून की आवाज, 1987 में राही, 1986 में ज्वाला, 1986 में लौंग दा लश्कारा, 1984 में रावण और 1982 में सितम में उनका प्रयास औसत ही रहा। जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था।

 

उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत सिंह का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ जिले के दल्ला गांव का रहने वाला है। मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था।

 

 

करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।

शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद में पढ़ने के लिए वह जालंधर चले गए। उन्होंने डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।

 

अपने संघर्ष के दिनों में जगजीत सिंह इस कदर टूट चुके थे कि उन्होंने स्थापित प्लेबैक सिंगरों पर तीखी टिप्पणी तक कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इस भूल को स्वीकार भी कर लिया था। इसके बाद उनकी दिलचस्पी राजनीति में भी बढ़ी और भारत-पाक करगिल लड़ाई के दौरान उन्होंने पाकिस्तान से आ रही गायकों की भीड़ पर एतराज जताया था।

 

जगजीत सिंह का कहना था कि पाकिस्तान से आने वाले कलाकारों पर बैन लगा देना चाहिए। दरअसल, जगजीत सिंह को पाकिस्तान ने वीजा देने से इनकार कर दिया था, लेकिन जब पाकिस्तान से उन्हें बुलावा आया, तब जगजीत सिंह की नाराजगी भी दूर हो गई। उन्होंने कई नवोदित गायकों की मदद भी की है। गजल की दुनिया में अच्छा नाम कमा चूके तलत अजीज की जगजीत सिंह ने काफी सहायता की है और उन्हें गायन के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए उनका प्रोत्साहन भी बढ़ाया है।

 

जगजीत सिंह का संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज संगीत के साथ खूबसूरती से घुलमिल जाती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफिलों में वाह वाह की दाद पर इतराती गजलों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो, तो जगजीत सिंह का ही नाम जुबां पर आता है।

 

जगजीत सिंह को वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है और फरवरी, 2014 में उनके सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी किए गए हैं। जगजीत सिंह की गजलों की फेहरिस्त काफी लंबी है, जिसमें उनकी गायी हुई एक से बढ़कर एक गजलें शामिल हैं। जगजीत सिंह का 10 अक्तूबर, 2011 की सुबह 8 बजे मुंबई में देहांत हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज होने के कारण 23 सितंबर को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जिस दिन उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ, उस दिन वे सुप्रसिद्ध गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे।

 

 

1980 में जगजीत सिंह (Jagjit Singh) के बेटे विवेक की मौत मात्र 18 साल में एक सड़क दुर्घटना से हो गई थी. किस्मत का कहर तो देखिए उस दिन भी जगजीत साहब गजल गा रहे थे।

 

 

आपको बताते चले कि साल 1980 में जगजीत सिंह (Jagjit Singh) के बेटे विवेक की मौत मात्र 18 साल में एक सड़क दुर्घटना से हो गई थी. किस्मत का कहर तो देखिए उस दिन भी जगजीत साहब गजल गा रहे थे. गजल खत्म हो ही रही थी कि तभी एक्ट्रेस अंजू महेंद्रू ने जगजीत सिंह (Jagjit Singh) से ‘दर्द से मेरा दामन भर दे’गजल सुनाने को कह दिया था. जब जगजीत साहब इस गजल को गा रहे थे तब वो रो पड़े थे. लेकिन उन्हें सदमा तब लगा जब गजल पूरी होते ही उन्हें अपने बेटे के एक्सीडेंट की खबर मिली. जवान बेटे की मौत का सदमा जगजीत और चित्रा को कुछ इस कदर लगा कि जगजीत सिंह ने अगले आठ महीनों तक खामोशी अख्तियार कर ली और चित्रा ने गाने से ही संन्यास ले लिया. सीने में बेटे की मौत का सदमा दबाए बैठे जगजीत सिंह जब वापस गजल गायकी की दुनिया में आए तो उनकी आवाज में पहले से ज्यादा दर्द था. मानों किसी का सबकुछ बिखर गया हो. लेकिन उन्होंने कभी अपने दर्द से संगीत को प्रभावित नहीं होने दिया।

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