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बारीक दानों को मोटा अनाज का नाम देकर उपेक्षित फसलों को एक बार फिर से पहचान मिलने लगी है।

हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ :- बारीक दानों को मोटा अनाज का नाम देकर उपेक्षित फसलों को एक बार फिर से पहचान मिलने लगी है। अंतर्राष्ट्रीय पौष्टिक अनाज वर्ष के बहाने न केवल इन अनाजों को महत्व मिल रहा है बल्कि इन्हें सेहत के लिए भी श्रेष्ठ माना जा रहा है। भारत सरकार भी अब हमारे परंपरागत अनाजों को उगाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही है। लेकिन यह मसला केवल एक वर्ष का नहीं है बल्कि इस दिशा में अभी बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है। हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा आयोजित एक परिचर्चा के दौरान प्राकृतिक खेती में योगदान के लिए इस वर्ष पद्म श्री से नवाजे गए हिमाचल के मंडी जिला के प्रगतिशील किसान श्री नेकराम शर्मा ने अपनी बातचीत में कहा कि वे तीन दशकों से इस दिशा में काम कर रहे हैं। गांवों में किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। पद्मश्री नेकराम ने कह कि 90 के दशक में जब वे साक्षरता अभियान से जुड़े तो उन्हें विभिन्न स्थानों पर जाने और सीखने का मौका मिला। इसी प्रेरणा से उनका रुझान पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक खेती की तरफ हुआ। उन्होंने कहा कि हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति में खंड अध्यक्ष रहते हुए लोगों को संगठित करके उन्हें प्राकृतिक खेती और पर्यावरण पर काफी काम भी किया।
शर्मा ने कहा कि उन्हें एक तरफ खुशी है कि हमारे परंपरागत अनाजों को महत्व मिल रहा है वहीं उन्हें चिंता भी है कि कहीं उत्पादन बढ़ाने की होड़ में इन अनाजों का हश्र भी अन्य फसलों या फलों की तरह न हो जाए जो आज भयंकर रासायनिक खादों और स्प्रे के शिकार हो कर ज़हर बन चुके हैं। शर्मा ने कहा कि उत्पादन के साथ साथ अभी इन अनाजों को साफ करने के लिए तकनीकी औजारों को उन्नत करने की जरूरत है। इसमें इन अनाजों का छिलका निकालने की मशीन, बुआई के लिए मशीन आदि शामिल है। वहीं कृषि विभाग की तरफ से समय पर बीज उपलब्ध करवाना भी जरूरी है।


समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि इन अनाजों को मध्याह्न भोजन, आंगनबाड़ी, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए देने का भी प्रावधान होना चाहिए ताकि इन अनाजों का स्वाद भी लोगों में विकसित हो सके।
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश भूरेटा ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर देश भर के प्रगतिशील किसानों से सुझाव लेने के लिए अधिवेशन का अर्जन किया गया जिसमें किसानों ने अपने अनुभव सांझा किए।

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